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बाबूजी.. क्या ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे में वे महिलाएं भी शामिल हैं, जो अपने माथे पर ‘मानव-मल’ उठाने के लिए विवश हैं..?

मैं आपका नारा..‘सबका साथ सबका विकास’ की तरफ आपका ध्यान ले जाना चाहूंगी कि इस नारे में क्या वे महिलाएं भी शामिल हैं जो अपने माथे पर ‘मानव-मल’ उठाने के लिए विवश हैं ? जबकि भारत में केवल रिकार्ड के लिए और कानूनन नियमानुसार मानव-मल उठाना निषेध है । दलित महिलाएं इस घृणित कार्य को करने के लिए इसलिए भी मजबूर हैं क्योंकि उनके पास रोजी-रोटी का और कोई चारा नहीं है..

माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी,
मैं आपका नारा..सबका साथ सबका विकास की तरफ आपका ध्यान ले जाना चाहूंगी कि इस नारे में क्या वे  महिलाएं भी शामिल हैं जो अपने माथे पर मानव-मल उठाने के लिए विवश हैं ? जबकि भारत में केवल रिकार्ड के लिए और कानूनन नियमानुसार मानव-मल उठाना निषेध है । दलित महिलाएं इस घृणित कार्य को करने के लिए इसलिए भी मजबूर हैं क्योंकि उनके पास रोजी-रोटी का और कोई चारा नहीं है.. जी हां यहां मैं बताना चाहूंगी कि वे दलित महिलाएं जो कई  सदी से इस काम में लगी हुई हैं जब वे इसे छोड़कर दूसरे काम के लिए जाती हैं तो उन्हें अस्पृश्य कहकर काम नहीं दिया जाता है ।

उत्तराखण्ड जिसे देवभूमि कहा जाता है वहां के एक छोटे शहर हरिद्वार के जबरदस्तपुर गांव में 45 साल की राज दुलारी हैं, जो प्रति दिन 20 घरों से मानव-मल को साफ करने का काम करती हैं। कैसा देश है यह यहां एक व्यक्ति अपना मल भी साफ नहीं कर सकता ? उसके अपने मल को उठाने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की जरूरत पड़ती है ? भारत को कैसे विकसित और महान कहा जा सकता है जिसके  'हरि के द्वार' में इस तरह का घृणित काम करने के लिए महिलाएं धकेल दी जाती हों ? 

भारत जैसे खूबसूरत देश में, जिसे आप एक विकसित देश और डिजिटल इंडिया बनाने के लिए दिन-रात सबके साथ की बात कर रहे हैं , उनमें ये मैला ढोने वाली महिलाएं कहां आती हैं ? मुझे पता है भारत के विकास में आपको इन महिलाओं की शायद कोई आवश्यकता न हो किन्तु मैं पूरे दावे के साथ कह सकती हूं कि इन्हें छोड़कर आप वास्तविक और विकसित भारत कभी बना नहीं पायेंगे । आज हमें विकसित और अतुलनीय भारत से कहीं ज्यादा वास्तविक भारत बनाने की जरूरत है ।


भारत में बेसलाइन सर्वे के अनुसार 11 करोड़ 10 लाख 24 हजार 917 घरों में शौचालय नहीं हैं इसलिए ‘खुले में शौच नहीं करना चाहिए’ ये पहल भी आपने ही शुरू की । तुरन्त घरों में शौचालय बनाने के लिए लोगों को जागरूक किया । महोदय आपने ‘स्वच्छता अभियान’ चलाया, जिसके लिए केन्द्र सरकार द्वारा 19,314 करोड़ रूपये खर्च किए गये, आपकी इस पहल के लिए लोग कायल भी हुए, तो  फिर आपकी आंखों से ये दलित महिलाएं और उनके माथे पर मानव-मल की टोकरी कैसे अनदेखी रह गयी ? इस घृणित पेशे में लगी इन महिलाओं की महज दिन-भर की कमाई केवल 10रूपये है । आप सोच सकते हैं कि एक व्यक्ति इस महगांई के समय में मात्र 10 रूपये में घर कैसे चला सकता है? जहां इतने करोड़ रूपये स्वच्छ भारत मिशन के लिए लगाए जा रहे हैं उसमें कुछ पैसे क्या इन महिलाओं को रोजगार के लिए दिए जा सकते हैं ? 

एक स्त्री जिसे भारत में आदर्श देवी लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती कहकर सम्मान दिया जाता है, नवमी में जिनके पांव धोकर पिया जाता है,,,“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ जैसे सूक्तियों से भारत को नवाजा जाता है. फिर ये कौन सा भारत है और वे कौन सी महिलाएं है जिनके माथे पर मानव-मल की टोकरी है?  विकसित राष्ट्र बनाने के लिए आपको ऐसे घृणित कामों को नज़रअन्दाज नहीं करना चाहिए । हजार पहल हमारी तरफ से और एक पहल आपकी तरफ से जरूर होनी चाहिए कि हमारे देश की दलित महिलाएं जिन्होंने विवश होकर अपने माथे पर सदियों से ये मानव-मल की टोकरी उठा रखी है उसे कहीं दफन  करें ताकि भारत जैसे देश में कहीं यह सुनने को न मिले कि जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ में विकास का एक मापदण्ड तैयार कर रहा है उसमें वे महिलाएं भी हैं जिनके माथे पर मानव-मल की टोकरी है ।

इस पत्र के माध्यम से मैं मैला-प्रथा उन्मूलन के लिए आपकी तरफ से विशेष पहल चाहती हूं ।
कृपया  शीघ्र से शीघ्र इसे भारत के कोने-कोने से समाप्त करें ।
धन्यवाद ! 

प्रार्थी
प्रियंका सोनकर

प्रियंका दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में तदर्थ शिक्षिका हैं.

संपर्क: [email protected]

 

English Summary: Babuji .. What are the women in the slogan 'Everyone with their development' who are constrained to lift 'man-stool' on their foreheads? Published on: 11 October 2017, 09:05 IST

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