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छत्तीसगढ़ के इस जिले में हो रही मोती की खेती

अगर आप इस बात की कल्पना करे कि समुद्र से निकलने वाले मोती अगर आपके खेत में दिखाई देने लगे. साथ ही पूरे खेत में सफेद रंग के मोती का ख्याल ही बेहद खूबसूरत है. वाकई में एक खेत ऐसा भी है जहां पर मोती भी उगाए जाते है. दरअसल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुभम राव के नाम का शख्स मोती की खेती कर रहा है. शुभम राव कृषि के छात्र है. वह जगदलपुर में रहते है. फिलहाल वह रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में रहकर पढ़ाई कर रहे है और यही वों मोतियों की खेती भी करते है.

किशन

अगर आप इस बात की कल्पना करे कि समुद्र से निकलने वाले मोती अगर आपके खेत में दिखाई देने लगे. साथ ही पूरे खेत में सफेद रंग के मोती का ख्याल ही बेहद खूबसूरत है. वाकई में एक खेत ऐसा भी है जहां पर मोती भी उगाए जाते है. दरअसल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुभम राव के नाम का शख्स मोती की खेती कर रहा है. शुभम राव कृषि के छात्र है. वह जगदलपुर में रहते है. फिलहाल वह रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में रहकर पढ़ाई कर रहे है और यही वों मोतियों की खेती भी करते है.

कैल्शियम कार्बोनेट से तैयार होता मोती

शुभम ने जब एसएससी एंटोमोलॉजी की पढ़ाई की तब उनको पता चला कि कैल्शियम कार्बोनेट से मोती का क्रिस्टल तैयार होता है. वही ऊतक का ऊपरी हिस्सा भी कैल्शियम कार्बोनेट का होता है. उसने आदिवासियों से मरे हुए ऊतक लिए और उसके ऊपरी भाग को अलग करके मिक्सर में पीसा. जब वह मिक्चर पूरी तरह से तैयार हो गया तो वह उसकी गोली बनाकर सांचो में एयरोटाइट से चिपका दिया.

ऑपरेशन  विधि का इस्तेमाल

सबसे बड़ी चुनौती थी कि आखिर इसे जिंदा ऊतक के अंदर कैसे डाला जाए. इसके लिए उसने ऑपरेशन विधि का इस्तेमाल किया है.ऊतक के मुंह को थोड़ा खोल कर उसके अंदर सांचे को डाल दिया. 9 महीने के बाद मोती सांचे के अनुसार तैयार मिला.

ऊतक लागता है तत्व

ऊतक सुरक्षा के कवच में बंद रहता है. ऐसे में ऑपरेशन के बाद जब कवच के आटे से तैयार सांचा अंदर डाला गया तो ऊतक कवच की सुंगध आने के चलते उसे पूरी तरह से स्वीकार कर लेता है.ऊतक उसे धीरे-धीरे चिकना करने के लिए अपने शरीर का तत्व उसमें लगाता है.

नौ महीनों में बनता है मोती

करीब नौ महीनों के बाद सांचे के ऊपर तत्व मोती के रूप में बदल जाता है. शुभम का कहना है कि ऊतक से मोती घर पर तैयार करना है तो उसे टंकी या गड्ढे में रखें वहां का पानी कभी न बदलें. उसका कहना है कि बड़े स्तर पर तो यह प्रयोग हो चुका है लेकिन छोटे स्तर पर पहला सफल प्रयास है.

अलग-अलग डिजाइन के मोती उगाते है

खास बात तो यह कि शुभम अलग-अलग किस्म के मोती उगाते है जिस पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति भी होती है.

करते है डिजाइनर मोती की खेती

शुभम  डिजाइनर मोती की खेती करते है यह आम गोलियों से अलग होता है. इसमें अलग-अलग आकृतियां उभरी होती है. डिजाइनर मोती को प्राथमिकता देने का कारण पर शुभम बताते है कि गोल मोती को बनाने में ज्यादा वक्त लगता है, वही इसकी कीमत भी कम है. डिजाइनर मोती 9 महीनों में और गोल मोती 11-12 महीनों में तैयार होता है,

घर के आंगन में हो सकती है खेती

शुभम बताते है कि मोती की खेती में लगात के साथ ही 50 फीसदी का मुनाफा भी तय होता है.मोती की खेती में बड़े जमीन की बाध्यता नहीं है. घर के आंगन में भी गडढा खोदकर इसकी खेती की जा सकती है. वही बड़े क्षेत्रों में भी इसका उत्पादन संभव है.बंजर जमीन पर भी मोती उगाए जा सकते है.क्योंकि किसी भी जगह गड्ढे में पानी भरकर इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते है.

English Summary: In this district of Chhattisgarh, example of pearl farming Published on: 18 June 2019, 12:23 PM IST

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