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जलजमाव से पेड़-पौधों को होते हैं ये भारी नुकसान, जानें प्रबंधन का तरीका!

Waterlogging Problem: अत्यधिक वर्षा, खराब जल निकासी और ठोस (सघन) मिट्टी, जलभराव के प्रमुख कारण है, जो वानस्पतिक विकास में कमी, पौधों के चयापचय (मेटाबोलिस्म) में परिवर्तन, पानी और पोषक तत्वों का कम अवशोषण, कम उत्पादन और पेड़ के कुछ हिस्सों या पुरे पेड़ की मृत्यु हो रही है.

डॉ एस के सिंह
डॉ एस के सिंह
जलजमाव से पेड़-पौधों को होते हैं ये भारी नुकसान (प्रतीकात्मक तस्वीर)
जलजमाव से पेड़-पौधों को होते हैं ये भारी नुकसान (प्रतीकात्मक तस्वीर)

बिहार में इस वर्ष तो बहुत कम वर्षा हुई है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में कही-कही भारी वर्षा हुई है. सितंबर माह मानसून के सक्रिय होने की वजह से बिहार के विभिन्न जिलों में भारी वर्षा होने की वजह से कही-कही जल जमाव की स्थित बनी हुई है. विभिन्न जिलों से फल के पेड़ों/फसलों के सूखने की समस्याएं देखी जा रही है, जिसे लेकर किसान अत्यधिक चिंचित है. अत्यधिक वर्षा होने की वजह से एवं बाढ़ के कारण अधिकांश बागों में जलजमाव जैसी स्थिति बनी हुई थी. अत्यधिक वर्षा, खराब जल निकासी और ठोस (सघन) मिट्टी, जलभराव के प्रमुख कारण है, जो वानस्पतिक विकास में कमी, पौधों के चयापचय (मेटाबोलिस्म) में परिवर्तन, पानी और पोषक तत्वों का कम अवशोषण, कम उत्पादन और पेड़ के कुछ हिस्सों या पुरे पेड़ की मृत्यु हो रही है.

पेड़ में जल भराव की वजह से उत्पन्न तनाव, कम सहनशील पौधों में क्षति का प्रमुख कारण है. पेड़ों में इन तनावों से बचने के लिए कई अन्य रक्षात्मक संशोधनों के साथ अधिक सहिष्णु है, जैसे श्वसन के वैकल्पिक मार्ग, एंटीऑक्सिडेंट और एथिलीन के उत्पादन में वृद्धि, पत्तियों का पीला होना (एपिनेस्टी इंडक्शन) और रंध्रों का बंद होना, और नई संरचनाओं जैसे कि जलजमाव को सहन करने वाली जड़ों का निर्माण.

पेड़ में ऑक्सीजन की कमी

बाढ़ के कारण फलों के पेड़ ऑक्सीजन की कमी से ग्रस्त होते हैं. ऑक्सीजन की कमी से पौधों की मृत्यु हो सकती है, तनाव के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए अच्छी तरह से क्रियान्वित उपाय बहुत उपयोगी हो सकते हैं. बाढ़ या जलभराव वाली मिट्टी के लिए फलों की फसलों में व्यापक सहिष्णुता होती है, लेकिन जब यह जलभराव लम्बे समय तक बागों में रहता है तो यह पेड़ की मृत्यु का कारण भी बनता है. कुछ पेड़ों की जड़ें जलभराव वाली मिट्टी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं जैसे, पपीता के खेत में यदि पानी 24 घंटे से ज्यादा रुक गया तो पपीता के पौधों को बचा पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव हो जाता है, बेर इत्यादि जैसे पेड़ों की जड़ें मध्यवर्ती होती है और आम, लीची एवं अमरूद के पेड़ कम संवेदनशील होते हैं. लेकिन बाग से पानी 10 से 15 दिन में निकल जाना चाहिए एवं मिट्टी का जल्द से जल्द सुखना भी जरुरी है. छोटी फसलें यथा स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी और रास्पबेरी 7 दिनों तक जलजमाव को सहन कर सकते हैं. आंवले जलभराव वाली मिट्टी के अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णु है.ॉ

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बाढ़ का पानी कम होने के बाद, कुछ फसलों पर फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न हो सकती है. हालांकि फलों के पेड़ जल जमाव के वर्ष में फल पैदा कर सकते हैं, लेकिन विगत वर्ष के तनाव के कारण, वे अगले वानस्पतिक वृद्धि के मौसम में मर सकते हैं. जलजमाव (बाढ़) के तुरंत बाद, मिट्टी और हवा के बीच गैसों का आदान प्रदान बहुत कम हो जाता है. सूक्ष्मजीव पानी और मिट्टी में ऑक्सीजन की ज्यादा खपत करते हैं. मृदा में ऑक्सीजन की कमी पौधों और मिट्टी में कई बदलाव लाती है, जो वनस्पति और फलों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. पौधे जल अवशोषण को कम करके और अपने रंध्रों को बंद करके प्रतिक्रिया करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण की दर कम होती है. इसके बाद, जड़ पारगम्यता और खनिज अवशोषण कम हो जाता है.

पत्तियों और फलों की वृद्धि में कमी

जलभराव वाली मिट्टी में, कम आयन (NO2-, Mn2+, Fe2+, S-) और रोगाणुओं के फाइटोटॉक्सिक उपोत्पाद जड़ चयापचय को जमा और प्रतिबंधित कर सकते हैं. निक्षालन (लीचिंग) और विनाइट्रीकरण भी हो सकता है. आमतौर पर बाढ़ की एक छोटी अवधि के बाद देखे जाने वाले पहले पौधे के लक्षण मुरझाए हुए पत्ते और एक अप्रिय गंध है जो अक्सर घायल या मृत जड़ों से निकलती है, जो भूरे रंग की दिखाई देती है. जलभराव के अन्य पौधों के लक्षणों में लीफ एपिनेस्टी (नीचे की ओर झुकना और मुड़ना), क्लोरोसिस शामिल है. जलजमाव की वजह से पत्तियों और फलों की वृद्धि कम हो जाती है और इसमें नई जड़ें पुन: उत्पन्न करने में विफल हो सकती हैं. फलों के पेड़ों के भूमिगत हिस्सों पर सफेद, स्पंजी ऊतक उत्पन्न हो जाते हैं.

पौधे को नुकसान से बचने के लिए प्रबंधन

जल जमाव वाले क्षेत्रों में मिट्टी का तापमान जितना अधिक होगा, पौधे को उतना ही अधिक नुकसान होगा. जल जमाव वाले क्षेत्रों में फलों वाले बागों में नुकसान को कम करने के लिए, नए जल निकासी चैनलों का खोदकर निर्माण करना या पंप द्वारा जितनी जल्दी हो सके बाग़ से पानी निकल कर, बाग़ को सूखा दें. यदि मूल मिट्टी की सतह पर गाद या अन्य मलबे की एक नई परत जमा हो गई है, तो इसे हटा दें और मिट्टी की सतह को उसके मूल स्तर पर बहाल कर दें. यदि मिट्टी का क्षरण हो गया है, तो इन स्थानों को उसी प्रकार की मिट्टी से भरें जो बाग में थी. रेत, गीली घास या अन्य प्रकार की मिट्टी का उपयोग न करें जो पौधों की जड़ों के आसपास मिट्टी डालते समय आंतरिक जल निकासी गुणों या मौजूदा मिट्टी की बनावट को बदल दें. जैसे ही धुप निकले एवं मिटटी जुताई योग्य हो उसकी जुताई करें.

बागो में पेड़ की उम्र के अनुसार खाद एवं उर्वरको का प्रयोग करे, लेकिन यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है की सितम्बर के प्रथम सप्ताह के बाद आम एवं लीची के बागों में किसी भी प्रकार के खाद एवं उर्वकों का प्रयोग नहीं करें, नहीं किसी प्रकार का कोई शष्य कार्य करें. यदि आपने सितंबर के प्रथम सप्ताह के बाद खाद एवं उर्वकों प्रयोग किया या किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि कार्य किया तो आपके बाग़ में फरवरी माह के अंत में मंजर (फूल) आने की बदले आपके बाग में नई-नई पत्तिया निकल आएगी जिससे आपको भारी नुकसान हो सकता है. यदि आपका पेड़ बीमार या रोगग्रस्त है और आपका उद्देश्य पेड़ को बचाना है तो बात अलग है.

वाणिज्यिक फल रोपण के लिए, बाढ़ के पानी के घटने के बाद कवकनाशी का उपयोग किया जा सकता है और यह निर्धारित किया जाता है कि फल फसलें अभी भी जीवित हैं. जलजमाव के बाद पौधे कमजोर हो जाते हैं और बीमारियों, कीटों और अन्य पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न के लक्षणों के लिए फलों की फसलों की जांच करें. इस बीमारी से संक्रमित पौधों में अक्सर पीले पत्ते होते हैं, जो हाशिये पर "जले हुए" दिखाई देते हैं और पतझड़ में समय से पहले मुरझा सकते हैं.

संक्रमित ऊतक पर स्वस्थ (सफेद) और संक्रमित (लाल भूरे) ऊतकों के बीच एक अलग रेखा दिखाई देती है. चूंकि यह कवक कई वर्षों तक मिट्टी में बना रह सकता है. इस रोग से बचाव के लिए रोको एम नामक फफुंदनाशक @2ग्राम/लीटर पानी में घोलकर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दे. एक वयस्क पेड़ के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगाने के लिए कम से कम 30 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी.

केले की फसल में जलभराव का प्रबंधन

भारी वर्षा की वजह से केला की फसल भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है, इनका विकास पूरी तरह से रुक गया है. आवश्यकता इस बात की है की जैसे ही खेत की मिट्टी सूखे तुरंत जुताई गुड़ाई करके सुखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों की कटाई-छटाई करें, बगल में निकल रहे अवाछ्नीय छोटे पौधों को काट कर हटा देना चाहिए. इसके बाद प्रति पौधा 200 ग्राम यूरिया एवं 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मुख्त आभासी ताने से 1 से 1.5 मीटर की दुरी पर रिंग बना कर देना चाहिए, इससे केला के पौधे बहुत जल्द सामान्य हो जायेंगे. ऐसा करने से हो सकता है की अगले साल इस पेड़ में मंजर न आए. ये सभी पेड़ बीमार है इन्हे बचाना आवश्यक है, बचेंगे तो फलेंगे.

English Summary: management waterlogging causes huge damage to trees and plants Published on: 30 September 2024, 12:33 IST

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