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परंपरागत तरल जैविक उर्वरकों का प्रयोग…

पिछले दो-तीन दशकों से निरंतर रासायनिक खादों के प्रयोग से जमीन की उर्वरक शक्ति में कमी आई है। इसी तरह अगर ये सिलसिला चलता रहा तो आने वाले समय में जमीन रसायनों का ढे़र बनकर रह जाएगी और हम सिर्फ पुरानी बातों को दोहरा के चीजों को बढ़ावा देते रहेंगे। आज जरुरत है तो हमारी कृषि कार्य प्रणाली में बदलाव लाने की फिर से हमे हमारे पुरखों के बताए पथ पर अग्रसित होना होगा।

पिछले दो-तीन दशकों से निरंतर रासायनिक खादों के प्रयोग से जमीन की उर्वरक शक्ति में कमी आई है। इसी तरह अगर ये सिलसिला चलता रहा तो आने वाले समय में जमीन रसायनों का ढे़र बनकर रह जाएगी और हम सिर्फ पुरानी बातों को दोहरा के चीजों को बढ़ावा देते रहेंगे। आज जरुरत है तो हमारी कृषि कार्य प्रणाली में बदलाव लाने की फिर से हमे हमारे पुरखों के बताए पथ पर अग्रसित होना होगा। उनकी कृषि कार्य प्रणाली को अपनाना होगा और कम लागत में अधिक मुनाफे का मूल मंत्र अपनाना होगा। जैसा कि हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी भी बोलते हैं कि 2020 तक किसानों की आमदनी दौगुनी हो जाएगी लेकिन इसकी पूरी सफलता कम लागत व अधिक मुनाफे पर टिकी हुई है। किसान भाइयों को परम्परागत कृषि को अपनाना होगा तभी आने वाली पीढ़ी को एक सुखद और खुशहाल जीवन मिल पाएगा। आइए आज से हम खतरनाक रसायनों को छोड़कर जैविक कृषि पर ध्यान दें। सदियों से विभिन्न प्रकार के उर्वरक उपयोग होते आए हैं जो पूर्णतः गाय के गोबर और गोमूत्र पर आधारित थे। उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के तरल जैविक उर्वरकों आज परम्परागत रूप से उपलब्ध हैं। तरल जैविक उर्वरकों की बनाने की विधि और उसकी उपयोगिता वर्णित है:

1.जीवामृत: यह एक विशिष्ट प्रकार का तरल जैविक उर्वरको है जो गाय के गोबर, गोमूत्र, किसी भी दाल का आटा, पुराने गुड़ और बरगद के पेड़ के नीचे से इकट्ठी की गई मिट्टी के मिश्रण से बनाया जाता है। इसमें गोबर 10 किलो, गौमूत्र -10 लीटर, दाल का आटा 2 किलो, पुराना गुड़ -2 किलो, बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी 2 किलो को 200 लिटर पानी में डाल कर बनाया जाता है। बनने के बाद इसे दिन में तीन बार सात दिन तक लकड़ी के डंडे की सहायता से घड़ी की दिशा में घुमाया जाता है। इस तरह सात दिन के बाद बने मिश्रण को खेतों में उपयोग किया जा सकता है।

उपयोग विधि:- बने हुए मिश्रण को सिंचाई के समय पानी में मिलाकर खेतों में  दिया जाता है।

उपयोग  के  लाभ:- जीवामृत के उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति में इजाफा होता है। लम्बे समय के लिए भूमि का टिकाऊ पन बना रहता है। इसे हर तरह की फसल में उपयोग में लाया जा सकता है जैसे फलों, सब्जियों और फूलों के उत्पादन में।

2.पंचगव्य: गाय के विभिन्न उत्पादों से बना यह तरल भूमि का उपजाऊ पन बढ़ाने के लिए उपयुक्त है। पंचगव्य गाय के गोबर, गौमूत्र, गाय के दूध से बना देशी घी, गाय  के दूध से बना दही और गाय के दूध से मूलतः बनाया जाता है तथा इसकी शक्ति बढ़ाने के लिए इसमें नारियल का पानी, गुड़ और केला भी मिलाया जाता है। इसको बनाने के लिए सात किलो गाय के गोबर को 1 लिटर घी में मिलाकर 3 दिनों तक रखते हैं तीन दिन के बाद इसमें गौमूत्र और 10 लिटर पानी मिलाया जाता है इस तरह बने मिश्रण को और तीन दिन रखते हैं और इसमें 3 लिटर दूध, 2 लिटर दही, 3 लिटर नारियल का पानी, 3 किलो गुड़ और 1 दर्जन केले मिलाए जाते हैं इस तरह बने मिश्रण को दिन में दो बार मिलाते हुए 15 दिन तक रखते हैं 15 दिनों के बाद ये मिश्रण खेतों में उपयोग के लिए तैयार हो जाता है।

उपयोग विधि:- बने हुए मिश्रण को सिंचाई के समय पानी में मिलाकर खेतों में दिया जाता है तथा इसका 3-4% तरल फसलों में छिड़काव के लिए उपयोग कर सकते है।

उपयोग के लाभ:- पंचगव्य फसलों की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ा के उनकी अच्छी वृद्धि को प्रोत्साहन देता है, तथा फसलों में होने वाले पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है।

इन तरल जैविक उर्वरकों का प्रयोग कर आप कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं जैविक खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए दिए हुए ईमेल और  दूरभाष क्रमांक पर संपर्क कर सकते हैं।

शिवेंदु प्रताप सिंह सोलंकी

डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्द्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमांचल प्रदेश)

मो. 918087474880

ई-मेल [email protected]

 

English Summary: The use of conventional liquid organic fertilizers ... Published on: 08 November 2017, 07:17 IST

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