ख़ून सस्ता है मगर यूं न पिया जाये मुझे
ज़हर जब फैले तो फ़ासिद न कहा जाये मुझे
पेश है चाय जो चाहे पिये गर-ए-दिल-ए-सब्ज़
जो नहीं चाहता वह ज़हर पिला जाये मुझे
हिन्दी साहित्य जगत में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण रही व प्रमुख कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा 110 वी जंयती के अवसर पर आज देश उनको स्मरण कर रहा है.…
सितारों का साथ निभाने को
चांद निकलता है
रात का अंधियारा भगाने को
सूरज निकलता है…
कार में इतनी जगह थी मैं समा सकता था क्यों यह साहब को लगा छोड़ दिया जाये मुझे
फ़ील-ए-बदमस्त की मानिन्द गुज़रने वाले! कहीं चियूंटी तेरी मय्यत न दिखा जाये मुझे
तख्त के गिर्द मैं करता रहा जिस तरह तवाफ़ उन मनासिक पे ही हाजी न कहा जाये मुझे
सब चराग़ों की हिफ़ाज़त के लिए जलता हूँ नहीं मन्ज़र अँधेरों में रखा जाये मुझे
यूँ ही हिजयान में बकता हूं मैं इन्साफ! इन्साफ! कुछ कहा जाये न मुझ से न सुना जाये मुझे.
अनीस अंसारी
स्त्रोत : कविता कोष
English Summary: anees AnsariPublished on: 27 May 2018, 01:26 IST
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