हिन्दी साहित्य जगत में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण रही व प्रमुख कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा 110 वी जंयती के अवसर पर आज देश उनको स्मरण कर रहा है.…
दीवारा पे वादों की अमरबेल चढ़ा दी रूख़्सत के लिए और बहाना ही नहीं था.
उड़ती हुई चिंगारियाँ सोने नहीं देतीं रूठे हुए इस ख़त को जलाना ही नहीं था.
नींदें भी नजर बंद हैं ताबीर भी क़ैदी ज़िंदाँ में कोई ख़्वाब सुनाना ही नहीं था.
पानी तो है कम नक़्ल-ए-मकानी है ज़्यादा ये शहर सराबों में बसाना ही नहीं था.
गुलाम मोहम्मद क़ासिर
स्त्रोत : कविता कोष
English Summary: Gulam Mohammad KasirPublished on: 27 May 2018, 01:35 IST
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