एक कविता देश के लिए, मिट्टी के लिए ,वतन के लिए "क्यों न करें मिट्टी पर नाज़ !"…
गली में उसकी बीता दी शामें
बदनाम हो गए शहर-भर में
कहां गए दिन कहां गईं रातें
हुस्न के चक्कर में
घरवालों ने खूब कोसा, दोस्तों ने समझाया
भटकने लगे घर - घर में
वो थी ही नहीं सिर्फ मैं था
हुस्न के चक्कर में
English Summary: indian beauty foreverPublished on: 29 March 2019, 05:59 IST
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