ख़ून सस्ता है मगर यूं न पिया जाये मुझे
ज़हर जब फैले तो फ़ासिद न कहा जाये मुझे
पेश है चाय जो चाहे पिये गर-ए-दिल-ए-सब्ज़
जो नहीं चाहता वह ज़हर…
हूजूम सी भीड़ बढ़ चली है
कोई एक साथ चले तो कुछ कहूं
आसमान में तारे तो बहुत हैं
चांद एक मुस्कुराए तो कुछ कहूं
रात की नींद में ख्वाब तो बहुत हैं
दिन में ख्वाब पूरे हों तो कुछ कहूं
अकेला हो आया था लेकिन
चार लोग उठा कर चलें तो
क्या कुछ कहूं
अब कहने-सुनने को कुछ बचा नहीं
फिर सुनो कुछ कहूं ।
English Summary: one hindi poetry for lifePublished on: 06 April 2019, 03:00 IST
कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!
प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।
Share your comments