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विलुप्ति के कगार पर है किसानों के ये दोस्त, इसलिए बढ़ रही है बीमारियां

प्रकृति के सभी जीव-जंतु अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर है. इकोलॉजी ये बात साबित करती है कि पर्यावरण में किसी एक के न होने से या किसी एक के कम हो जाने से कैसे समूची प्रकृति प्रभावित होती है. आज़ लोगों को कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां अपनी चपेट में ले रही है. लोग कम उम्र में ही बुढ़ापे का शिकार होते जा रहे हैं. जिसका एक कारण ये भी है कि किसान अपने प्रकृतिक मित्रों से दूर हो गए हैं.

सिप्पू कुमार
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प्रकृति के सभी जीव-जंतु अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर है. इकोलॉजी ये बात साबित करती है कि पर्यावरण में किसी एक के न होने से या किसी एक के कम हो जाने से कैसे समूची प्रकृति प्रभावित होती है. आज़ लोगों को कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां अपनी चपेट में ले रही है. लोग कम उम्र में ही बुढ़ापे का शिकार होते जा रहे हैं. जिसका एक कारण ये भी है कि किसान अपने प्रकृतिक मित्रों से दूर हो गए हैं.

किसी समय खेतों में आमतौर पर दिखाई देने वाले पशु-पंछी गायब हो गए हैं. मोर, तीतर, बटेर, कौआ, बाज, गिद्ध को आपने आखरी बार कब देखा था, आप याद कीजिये. क्या आपको याद है आखरी बार गौरैया चिड़िया आपके घर के आंगन में कब चहचहाई थी. सत्य तो ये है कि अधिक से अधिक फायदें के लालच में हमने इन पंक्षियों को विलुप्ति के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.

खेती में क्या है इन पंछियों का योगदान

पंछी खेतों में बड़ी संख्या में कीटों को मारकर खाते हैं. आज से एक दशक पहले तक ग्रामीण क्षेत्रों में ये पक्षी आसानी से देखने को मिल जातें थे. लेकिन आज के समय में ये दुर्लभ ही मिलते हैं.

तीतर-बटेर जैसे पक्षी जहां दीमक को खत्म करने का काम करतें थे.  वहीँ कौआ, गिद्ध आदि चूहों और छोटे जानवरों को खाकर फसलों को सुरक्षित रखतें थे.

किसानों से क्यों दूर हो गए हैं ये पक्षी

समय के साथ स्थितियां बिल्कुल प्रतिकूल हो गई है. किसानों द्वारा अंधाधून हो रहे कीटनाशकों व रसायनों के बढ़ते प्रयोग से इनकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से घटकर रह गई है. वहीं जंगलों एवं पेड़ों के खत्म होने से इनके आशियानें छिन गएं हैं, जिससे ये पलायन कर रहे हैं.

English Summary: best friends of the farmers are going to disappear this is the main reason Published on: 26 October 2019, 06:25 PM IST

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